देश जब कोविड महामारी से जूझ रहा है और ऐसे में किसानों की आजीविका बुरी तरह से प्रभावित हुयी है। ऐसे समय में स्वयं सहायता समूह वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में न केवल आय प्राप्त कर रहे है बल्कि कोविड से जुड़े निर्देशों का पालन कर रहे है।केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, रहमानखेड़ा के निदेशक डा.शैलेंद्र राजन ने बताया कि आम बागवानो की आय बढ़ाने हेतु मलिहाबाद में दो वर्ष पूर्व आम आधारित मुरगी पालन की शुरुआत फारमर फ़र्स्ट परियोजना के अंतर्गत की गयी थी। किसानों को भारतीय पंक्षी अनुसंधान संस्थान, बरेली से ला कर बाग में सफलतापूर्वक चलने वाली क़िस्में जैसे कारी- निर्भीक, कडकनाथ, अशील, कारी देवेन्द्र इत्यादि दी गयी । किन्तु किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिये संस्थान ने इन किसानों का एक स्वयं सहायता समूह सहभागिता बनाया जिसमे २५ किसानों ने भागीदारी की। संस्थान द्वारा उन्हें एक सामुदायिक हैचरी दी गयी।
जहाँ एक ओर बरायलर चिकन उधोग लाकडाउन में बुरी तरह प्रभावित हो चुका है वहीं ग्रामीण मुरगी उधोग इससे ज़्यादा प्रभावित नहीं हुआ है। देशी मुर्ग़ी का वजन जहाँ धीरे बढ़ता है वहीं वह अपना भोजन कीटों, खरपतवार के बीजों, एवं सड़े गले अनाज एवं सब्ज़ियों से प्राप्त करते है जिससे किसानों पर ज़्यादा बोझ नहीं पड़ रहा है। किसान कडकनाथ और निर्भीक जैसी क़िस्मों के बच्चे लाक डाउन में तैयार कर रहे है क्योंकि इन क़िस्मों का बाज़ार इन हालातों में बेहतर दिखाई दे रहा है। बरायलर की उम्र बेहद सीमित होने के साथ इनकी खुराक का खर्च ज़्यादा आता है साथ ही इनकी दवाइयों का खर्च भी ज़्यादा आता है। देशी मुर्ग़ियों में रोगों के प्रति रोधातमक क्षमता होती है साथ ही पोषण पर खर्च कम आता है। आपदा की इस हालत में किसानों के लिए ये बेहद लाभप्रद साबित हो रही है।
महामारी के इस दौर में जब बाक़ी किसान भयभीत है, सहभागिता को बीमारी से बचाव हेतु परियोजना के प्रधान अन्वेषक डा. मनीष मिश्र ने कार्य के समय सामाजिक दूरी के लिये प्रेरित किया साथ ही किसानों को मास्क एवं सैनेटाइजर दिये। हैचरी प्रबंधन हेतु किसानों की एक टीम पंक्षी अनुसंधान, बरेली में प्रशिक्षण प्राप्त कर चुकी है। आज सहभागिता के किसान न केवल हैचरी को सैनेटाइज कर रहे है बल्कि पूरी तरह से विसंकरमित अंडो को बेच रहे हैं और इस आपदाकाल में धन अर्जन कर रहे है। सहभागिता का अपना बैंक खाता है जिसके माध्यम से ये अपना व्यापार कर रहे है। डा. राजन बताते हैं कि आने वाले समय में स्वयं सहायता समूहों और एफ़पीओ की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। आपदा के समय खेती में किसानों को समूह में जुड़ना बेहद महत्वपूर्ण होगा।